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FORCE (बल एवं बल के प्रकर)


बल वह बाह्य कारक है। तो किसी भी वस्‍तु की    मूल अवस्‍था में परिवर्तन कर देता है। बल को सबसे पहले न्‍यूटन ने  गति के प्रथम नियम में परिभाषित किया था इसलिए बल का मात्रक न्‍यूटन है।
बल विभिन्‍न प्रकार का होता है।

1.     अभिकेन्‍द्रीय बल :- वह बल जो वृत की परिधि से वृ के केन्‍द्र की ओर लगता है। उसे अभिकेन्‍द्रीलय बल कहते है। इस बल के कारण ही कोई भी पिण्‍ड अपने  वृतताकार मार्ग पर घूमता रहता है।

उदाहरण-  1. मौत का कुऑ
  2. सभी ग्रह, सूर्य का और सभी उपग्रह, ग्रह का चक्‍कर लगा रहे है।
3. इलैक्‍ट्रॉन नाभिक का चक्‍कर लगा रहे है।
4. चौराहे पर मुड़ते समय मोटर साइकिल सववार का झुक जाना
5. वायुयान उतरते समय जब क्षैतिज रूप में मुड़ता है। तो थेड़ा टेडा होकर केन्‍द्र की ओर अभिकेन्‍द्रीय बल लगाता है
6. घुामावदार मोड पर बाहन पलटते नहीं  है क्‍योंकि  बाहन के टायर और सड़क के बीच घर्षण बल कार्य करता है। यह घर्षण बल अंतत: अभिकेन्‍द्रलीय बल प्रदन करत है। सड़क जितनी खुरदरी होगी घर्षण बल उतना ही ज्‍यादा होगा
7. किसी डोरी में भारी पिण्‍ड को बाधकर जब उगली से घुमाते है। तो उगली केन्‍द्र की ओर अभिकेन्‍द्रीय बल लगाती है।

2. अपकेन्‍द्रीय बल  :- वह बल जो वृत के केन्‍द्र से परिधि की ओर लगता है  उपकेन्‍द्रीय बल कहलाता है यह छदम बल है जो कुछ समय के लिए कार्य करता है। 
उदा:- 1. किसी घुमावदार मोड़ पर जब बाहन मुडते है तो उसमें  वैठे यात्री  बाहन की विपरीत दिशा में एक झटका महसूस करते हैं और विपरीत दिशा में मुड जाते हैं
2.     दूध से मक्‍खन निकालना (दूध से क्रीम निकालना)
3.     कपड़ा सुखाने वाली मशीन

3. आसंजक बल :- दो असमान अणुओं के बीच लगने वाला बल आसंजक बल कहलाता है
      उदा:- 1. स्‍याही का पेज पर चिपकना
     2. पेन्‍ट का दीवार पर चिपकना
     3. पानी की कुछ बुदों का कॉच पर चिपकना

4. सासंजक बल :-  दो समान अणुओं के बीच लगने वाले आकर्षण बल को ससंजक बल कहते हैं।
      अदा:- पानी की दो बूदों के बीच लगने बाला बल 

गुरूत्‍वा कर्षण बल :- न्‍यूटन के अनुसार दो पिण्‍डों के बीच लगने वाला आकर्षण बल गुरूत्‍वाकर्षण बल कहलाता है। यह बल दो पिण्‍डो के बीच उनके दृव्‍यमानों के गुणनफल के समानुपाती और उनके  बीच की दूरी के वर्ग के व्‍युत्‍क्रमानुपाती होता है।
न्‍यूटन के अनुसार यदिी दो पिण्‍डो में एक पिण्‍ड प्रथ्‍वी हो अर्थात प्रथ्‍वी उस पिण्‍ड को अपनी ओर आकर्षित कर लेती है। इसी को पृथ्‍वी का गुरूत्‍व कहते हैं। F = GM1M2 / r2
G = 6.67 x 10-11 NM/kg2
जहाँ G  = सार्वभौमिक गुरूत्‍वाकर्षण नियतांक

गुरूत्‍व:- यह पृथ्‍वी का वह गुण है। जिसके द्वारा वह किसी भी वस्‍तु को अपने केन्‍द्र की ओर आकर्षित कर लेती है।
गुरूत्‍व केन्‍द्र :- वह स्‍थान जहॉं किसी पिण्‍ड या व्‍यक्ति का सम्‍पूर्ण भार अधिकतकम होता है। गुरूत्‍व केन्‍द्र कहलाता है। गुरूत्‍व केन्‍द्र से गुजरने वाली उर्ध्‍वाधर रेखा उस पिण्‍ड के आधार के अंन्‍दर से होकर गुजररती है। जिस पिण्‍ड का क्षेत्रफल जितना अधिक होगा उसका गुरूत्‍व केन्‍द्र उतना ही अधिक स्‍थाई होगा इसी प्रकार केन्‍द्र से ऊचाई जितनी अधिक होगी गुरूत्‍व केन्‍द्र उतना ही  अधिक स्‍थाई होगा।
1.    पीसा की झुकी हुई मीनार
2.    मनुष्‍य की सोधे खडे रहना
3.    पहाड़़ पर चड़ते समय या पीठ पर बोझा लेकर चलते समय  आगे की ओर झुक जाना
4.    दो मंजिला बसो में पहली मंजिल अधिक चौड़ी बनाई जाती दूसरी मंजिल  की अपेक्षा।



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